बिना विचार किए गये कार्य!

किसी ने कहा है कि  बिना विचार किये कार्य करने वाले को हमेशा पछताना पड़ता है। ये कहानी एक व्यापारी की है, जो कि व्यापार से अपना जीवकोपार्जन करता था, लेकिन उसमें एक ये आदत बेहद खराब दी थी, कि वो हमेशा दूसरों की तरक्की देखा करता था, और उसी हिसाब से खुद को भी ढालने की कोशिश करता , उसी के पड़ोस मे उस इलाके का धनी व्यक्ति रहता था,उसने शहर में बहुत बड़ा घर खरीद लिया, आसपास के लोगों ने व्यापारी को यह बात बताई कि पड़ोसी ने नया घर खरीदा है, यह सुनकर व्यापारी को लगा कि उसने इतना बड़ा ङर खरीद लिया अब मैं भी उसी के जैसा एक घर खरीदूंगा, और यह सोचकर व्यापारी अब पैसे का इंतजाम करने लगा,और उसने कहीं से पैसे उधार लिए, और कुछ पैसे अपने व्यापार से निकाले और शहर में उसने भी घर खरीद लिया, बिना ये विचार किये कि उसको घर की जरूरत है, कि नहीं, उसके पास कमाई का साधन है, कि नहीं, अब उस घर को लिए हुए कुछ महीने बीत गये, और जिससे उसने उधार लिये थे, उनका भी पैसा देने का समय आ गया, लेकिन उसके पास अब पैसे भी नहीं थे, क्योंकि उसने व्यापार से भी पैसे निकाल लिये थे, इसलिए व्यापार भी घाटे में चल रहा था, अब व्यापारी बहुत परेशान हो गया क्योंकि उसको पैसे चुकाने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था,अब नौबत ये आ गई कि व्यापारी को व्यापार भी बंद करना पड़ गया । क्योंकि उसने व्यापार से सारे पैसे घर बनाने में ही लगा दिए थे,जब उसको लगा कि अब बात नहीं बनेगी, तो उसने जिनसे पैसे उधार लिए, थे, उन्ही लोगो से कहा कि आप ये घर ले लीजिए, क्योंकि मैं आपके पैसे नहीं चुका पाऊंगा, और उसने अपना घर उन्ही लोगों को दे दिया, लेकिन अभी भी समस्या खत्म नहीं हुई क्योंकि व्यापार उसका बंद हो चुका था ,और उसके जीवकोपार्जन का कोई साधन भी नहीं था। यही सोचकर वह काम की तलाश करने लगा, कुछ दिनो में उसको एक सेठ के यहां छोटा सा काम मिल गया, जिससे वह जीवन यापन करता क्योंकि उसके पास कोई अन्य साधन भी नहीं था,और वो हमेशा इस बात से दुखी रहता कि, अगर उसने दूसरे को देखकर घर न लिया होता तो, आज हालाता इतने खराब न होते।

दोस्तो आजकल लोंगो की आदत कुछ इसी तरह हो गई, कि वो बिना अपनी परिस्थितियों का आंकलन किये, केवल दूसरों को देखकर अपना काम करते हैं, जिससे उनके पास दुखी होने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता, इसीलिए हमें अपने निर्णय अपनी परिस्थितियां और जरूरतें देखकर ही लेना चाहिए।

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