भगवत गीता सुविचार! भगवान का ऐश्वर्य!

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, न तो देवतागण मेरी उत्पत्ति या ऐश्वर्य को जानते हैं, और न महर्षिगण ही जानते हैं, क्योंकि मैं सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों का कारणस्वरूप हूं (उद्गम) हूं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, न तो देवतागण मेरी उत्पत्ति या ऐश्वर्य को जानते हैं, और न महर्षिगण ही जानते हैं, क्योंकि मैं सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों का कारणस्वरूप (उद्गम) हूं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं,  जो मुझे अजन्मा, अनादि, समस्त लोकों के स्वामी के रूप में जानता है, मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त होता है।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमाभाव, सत्यता, जीवों के ये विविध गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, इन्द्रियनिग्रह, सत्यता, मननिग्रह, सुख तथा दुख, जन्म, मृत्यु, भय, अभय, अहिंसा, तुष्टि, तप, दान, यश, तथा अपयश- जीवों के ये विविध गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं।

जो मेरे इस ऐश्वर्य तथा योग से पूर्णतया आश्वस्त है, वह मेरी अनन्य भक्ति में तत्पर होता है। इसमे तनिक भी संदेह नहीं है।

मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतकि जगतों का कारण हूं, प्रत्येक वस्तु मुझ मही से उद्भूत है। जो बुद्धिमान यह भलीभांति जानते हैं, वे मेरी प्रेमाभक्ति में लगते हैं तथा हृदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं, उन्हे मैं ज्ञान प्रदान करता हूं, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं अपने भक्तों पर विशेष कृपा करने के हेतु उनके हृदयों में वास करते हुए ज्ञान के प्रकाशमान दीपक के द्वारा अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं समस्त जीवों के हृदय में स्थित परमात्मा हूं। मैं ही समस्त जीवों का आदि, मध्य तथा अन्त हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं आदित्यों में बिष्णु, प्रकाशों में तेजस्वी सूर्य, मरुतों में मरीचि, तथा नक्षत्रो में चन्द्रमा हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं समस्त रुद्रो में शिव हूं, यक्षों तथा राक्षसों में सम्पत्ति का देवता (कुबेर) हूं, वसुओ में अग्नि हूं और समस्त पर्वतों में मेरु हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मुझे समस्त पुरोहितो में बृहस्पति जानो। मैं ही समस्त सेनानायको में कार्तिकेय हूं और समस्त जलाशयो में समुद्र हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं महर्षियों में भृगु हूं, वाणी में ओंकार हूं, समस्त यज्ञों में पवित्र नाम का कीर्तन (जप) तथा समस्त अचलों में हिमालय हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं समस्त वृक्षो में अश्वत्थ वृक्ष हूं, और देवर्षियों में नारद हूं, मैं गन्धर्वो में चित्ररथ हूं, और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, घोड़े में मुझे उच्चैश्रवा जानो, जो अमृत के लिए समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था, गजराजो में ऐरावत हूं तथा मनुष्यों में राजा हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं हथियारों में वज्र हूं, गायों में सुरभि, सन्तति उत्पत्ति के कारणों में प्रेम का देवता कामदेव तथा सर्पो में वासुकि हूं।

श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं, दैत्यो में मैं भक्तराज प्रहलाद हूं, दमन करने वालों मेंं मैं काल हूं, पशुओं में सिंह तथा पक्षियों में गरुड़ हूं।

श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं, समस्त पवित्र करने वालों में मैं वायु हूं, शस्त्रधारियों में राम, मछलियों में मगर तथा नदियों में गंगा हूं।

श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं, मैं समस्त सृष्टियों का आदि, मध्य, और अन्त हूं। मैं समस्त विद्याओं में आत्मविद्या हूं, और तर्कशास्त्रियों में निर्णायक सत्य हूं।

श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं, अक्षरो में मैं अकार हूं और समासो में द्वंद समास हूं। मैं शाश्वत काल भी हूं और सृष्टाओं में ब्रह्मा भी हूं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं सर्वभक्षी मृत्यु हूं, और मैं ही आगे होने वालों को उत्पन्न करने वाला हूं। स्त्रियों में मैं कीर्ति, श्री, वाक, स्मृति, मेधा, धृति, तथा क्षमा हूं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं छलियों में जुआ हूं और तेजस्वियो में तेज हूं। मैं विजय हूं, साहस हूं, और बलवानों का बल हूं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं वृष्णवंशियों में वासुदेव और पाण्डवो में अर्जुन हूं। मैं समस्त मुनियों में व्यास तथा महान विचारकों में उशना हूं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, अराजकता को दमन करने वाले समस्त साधनों में से मैं दण्ड हूं, और जो विजय के आकांक्षी हैं उनकी मैं नीति हूं। रहस्यों में मैं मौन हूं और बुद्दिमानों में ज्ञान हूं।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मेरी दैवी विभूतियों का अन्त नहीं है। मैने तुमसे जो कुछ कहा, वह तो मेरी अनन्त विभूतियों का संकेत मात्र है।

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, मैं समस्त सृष्टि का जनक बीज हूं। ऐसा चर तथा अचर कोई भी प्राणी नहीं है, जो मेरे बिना रह सके।

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