भगवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, कि मन ही आपका मित्र और मन ही आपका शत्रु हैं, लेकिन आपके पास समस्या आती है, कि मन को अपना मित्र बनाया कैसे जाए, दोस्तों जिन्होने मन को अपना मित्र नहीं बनाया उनका मन अनियंत्रित रहता है, और वो कभी भी सफल नहीं हो पाते , इसलिए आपको मन को अपना मित्र बनाना ही होगा, हम अपने नये दोस्तो को खिलाते है,पिलाते हैं, थोड़ा घुमाते हैं, तो वो हमारी बात मानने लगता है,वैसे ही मन भी है,मन को दोस्त बनाने नियम
1-अपना लक्ष्य निर्धारित करिए, ताकि मन को उसी अनुसार चलाया जाए।
2-कुछ मिनट ध्यान अवश्य करिए, ताकि मन एकाग्र हो सके।
3-ये बात हमेशा ध्यान रखें,कि जिस चीज पर ध्यान देंगे, वैसी ही आपकी मन की स्थिति होगी, इसलिए किसी नकारात्मक विचारों पर ध्यान देने से बचें।
4-मन को मानसिक भोजन चाहिए जैसे अच्छी पुस्तकें, अच्छी बातें, अच्छे लेक्चर्स उनको देते रहिए।
5-मन को कभी भी असत्य मत दीजिए।
6-लोभ-ईर्ष्या ये सब मन को गलत रास्ते पर ले जाते हैं, इनसे दूर रहिए।
6-मन अगर गलत कार्य में जाने लगे ती उसको सही कार्य में लगाइए, न कि आप उसी काम में लग जाएं।
7-आप अपनी गतिविधियों पर नियंत्रण रखिए, क्योंकि एक बार ये मन में आने के बाद मन वहां जा सकता है, क्योंकि आप उसको वहीं पर ले जा चुके हैं।
8-खुद को मन के अनुसार न चलाएं, क्योंकि अगर आपमें कुछ गलत आदतें हैं, तो वो मन वहां पर ले जा सकता है, इसलिए मन पर लगाम रखिए।
9-खुद को कभी ये न कहें, कि मेरे मन कहता है, इसलिए मैने किया बल्कि सही रास्ता चुनिए, ताकि आपका मन उसी रास्ते पर चले।
10-कभी भी मन के विचार को खुद का न समझिए, क्योंकि विचार और आप अलग अलग हैं, आप चाहेंगे, तभी आपके विचार में प्रतिक्रिया होगी।
11-हमेशा खुद इतने जागरुक रखिए, कि आपको पता हो कि क्या करना सही है, और क्या गलत है।
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