Janmashtami
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जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण से सीख!

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जन्माष्टमी जिसको लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में ये त्यौहार मनाया जाता है, जन्माष्टमी मुख्य रूप से श्रीकृष्ण उपासको के लिए विशेष दिन होता है, जिसमें सभी भक्त उपवास रखते हैं, जगह जगह पर झांकियां रखी जाती हैं, लोग दिन भर कीर्तन करते हैं, भगवान की पूजा करते हैं, और रात में 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म होने के पश्चचात पूजा अर्चना करके फिर प्रसाद पाते हैं।

सनातन धर्म में श्रीकृष्ण भगवान को हर तरह की शिक्षाओं के विशेषज्ञ के रूप में माना जाना है, चाहे वो राजनीति हो , कूटनीति हो या प्रेम हो कृष्ण की उत्कृष्टता हर कार्य में दिखती है, उनके पास अनगिनत विपरीत परिस्थितियां आई लेकिन उन्होने हर स्थिति को मुस्कुराते हुए सम्भाला, य़हां तक कि महाभारत का युद्ध जो अधर्म के विरुद्ध था उस युद्ध में भी उन्होने अर्जुन की सहायता करके विजय श्री दिलवाई। महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने जो भगवद्गीता का उपदेश दिया था वो आप भी लोगों की प्रेरणा और जीवन को मार्गदर्शन देने का कार्य करता है। भगवद्गीता की कुछ सीखों में प्रमुख सीख है –

कर्तव्य पालन – महाभारत युद्ध के समय जब अर्जुन का रथ दोनो सेनाओ के मध्य लाया गया तो अर्जुन ने कहा कि अपने संबंधियो के युद्ध के लिए उपस्थित देखकर मेरे अंग कांप रहे हैं, मेरा मुह सूखा जा रहा है,रोगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा सिर चकरा रहा है, और मुझे केवल अमंगल ही दिख रहा है, अपने ही स्वजनो का वध करने में कोई अच्छाई नहीं दिख रही । और इस प्रकार अर्जुन ने धनुष वाण एक तरफ रख दिया और शोक में डूब गया । इस पर भगवान ने समझाया कि जो विद्वान होते है वो न तो जीवित के लिए न ही मृत के लिए शोक करते हैं। और भगवान ने ये भी समझाया कि आत्मा अजर अमर है, और क्षत्रिय होने के नाते तुम्हारे लिए धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ करे कोई कार्य नहीं है, तुम सुख दुख हानि या लाभ , विजय या पराजय का विचार किये बिना युद्ध करो । ऐसा करने पर तुम्हे कोई पाप नहीं लगेगा। इस तरह भगवान हमें शिक्षा देते हैं , कि हमें अपने मन की दुर्बलता को छोड़कर अपने कर्तव्य का पालन अवश्य करना चाहिए।

इन्द्रियों पर नियंत्रण – भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, जिस प्रकार पानी में तैरती नाव को प्रचन्ड वायु बहाकर ले जाती है, उसी प्रकार विचरणशील इन्द्रियों में से कोई एक जिस पर मन निरंतर लगा रहता है, मनुष्य की बुद्धि को हर लेती है। इसलिए हे महाबाहु जिस पुरुष की इन्द्रियां अपने- अपने विषयों से सब प्रकार से विरत होकर उसके वश में है, उसी की बुद्धि स्थिर है। जिस व्यक्ति ने इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाओं का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाओं से रहित रहता है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकता है। भगवान श्रीकृष्ण का ये संदेश कि इंसान अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण करे अन्यथा ये इन्द्रियां बुद्धि को हर लेगीं और इंसान के जीवन में अशांति और अस्थिरता पैदा कर देगीं।

कर्म न करने में आसक्ति रहित और कर्मफल का कारण खुद को न मानना – भगवान अर्जुन को यह सीख देते हैं, कि कर्म करने का अधिकार तुम्हे है, लेकिन कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो , तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्म के फलों का कारण मानो , न ही कर्म करने में कभी आसक्त होओ। जय पराजय की समस्त आसक्ति का त्याग कर समभाव से अपना कर्म करो। ऐसी समता योग कहलाती है। इसमें भगवान हमें भी शिक्षा देते हैं, कि हम केवल कर्म करने के अधिकारी है, फल हमारे हाथ में नहीं है इसलिए हमें उसके लिए शोक नहीं करना चाहिए, और न ही खुद को कर्म फल का कारण मानना चाहिए, और लाभ हानि की आसक्ति से रहित होकर केवल कर्तव्य करना चाहिए।

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