आप में से बहुत सारे लोगों से भक्ति के बारे में सुना होगा कि भक्ति करो , भक्ति से भगवान मिलते हैं, लेकिन आपको हो सकता है, कि ये पता न हो कि भक्ति कैसै करें, भक्ति कितने प्रकार की होती है, हालांकि ये प्रश्न आस्तिक लोग पूंछते हैं जो भगवान की प्राप्ति चाहते हैं, और जीवन में आनंद चाहते हैं, क्योंकि भक्ति के बिना किसी का कल्याण नहीं हो सकता ।
आपमें से अधिकांश लोगों ने भक्त प्रहलाद के बारे में सुना होगा, भक्त प्रहलाद ने अपने पिता हिरणक्श्यपु को नवधा भक्ति के बारे में बताया था यानि भक्ति नौ प्रकार की होती है। इसके अलावा आपने भक्तिमती शबरी का नाम भी सुना होगा एक भजन भी भीलनी परम तपस्विनी शबरी जाको नाम, मुनि मतंग कह कर गए तोहि मिलेंगे राम। शबरी माता का वर्णन करते हुए तुलसीदास रामचरितमानस में राम द्वारा शबरी को दिये गए नवधा (नौ ) प्रकार की भक्ति के बारे में बताया है
नवधा भगति कहउं तोहि पाहीं, सावधान सुन धरु मन माही । प्रथम भगति संतन कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
गुरू पद पकंज सेवा तीसरि भगति अमान। चौथि भगति मम गुनगन करइ कपट तजि गान।।
मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा।। छट दम सील बिरति बहु कर्मा। निरत निरंतर सज्जन धरमा।।
सातवं सम मोहि मय जग देखा। मोते संत अधिक करि लेखा।। आठवं जथा लाभ संतोषा, सपनेहु नहि देखइ परदोषा।।
नवम सरल सम सन छलहीना । मम भरोष हियं हरष न दीना।।
राम जी कहते हैं , शबरी मैं अपनी नवधा भक्ति कहता हूं, सावधान होकर सुन! मेंरी पहली भक्ति है, सतसंग यानी संतो का संग, और दूसरी है, मेरी कथा में प्रेम होना , तीसरी भक्ति है गुरू के अभिमान रहित होकर गुरुजनो की सेवा करना , चौथी भक्ति है, छल कपट छोड़कर मेरे गुणों का गान करना। पांचवी भक्ति मेरे मंत्र का जाप और दृढ़ विश्वास जो वेदों में प्रसिद्धि है, छठवी भक्ति इन्द्रियों का निग्रह और चरित्रवान रहना , बहुत सारे कार्यों से वैराग्य और निरंतर सत पुरुषो (सज्जनो) के धर्मों में लगे रहना। सातवी भक्ति है, जगत को समभाव से राममय देखना, और संतो को मुझसे भी अधिक मानना, आठवी भक्ति है, जो मिल जाए उसमें संतोष करना दूसरों के दोषों को सपने में भी नहीं देखना, नौवी भक्ति सबके साथ सरलता औऱ छल कपटरहित बर्ताव रखना और कभी हर्ष और दीनता का न होना। इनमें से अगर एक भी भक्ति किसी के पास है, हे भामिनी वह मुझे अत्यंत प्रिय है।
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