भक्ति करने वाले लोग परेशान क्यों रहते हैं, ये प्रश्न अधिकतर वो लोग पूंछते हैं, जो भक्ति नहीं करते या जिनको ये लगता है, कि भक्त के जीवन में कष्ट क्यों होता है, इसके अलावा कुछ ऐसे लोग भी इस प्रश्न को पूंछते हैं, जो भक्ति की शुरूआत करते हैं।
इसका उत्तर अगर आप अगर रामचरित मानस से समझते हैं, तो उसमें भगवान कहते हैं, सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥ इसका अर्थ है, कि जैसे ही जीव भगवान के सन्मुख होता है, तो वो करोड़ो जन्म के पाप को नष्ट कर देते हैं। यानि भगवान जीव के कई जन्मों के पाप को नष्ट कर देते हैं। उसके अलावा भगवान कि भक्ति करने वाला आपको कष्ट में दिख तो सकता है, लेकिन उसको कष्ट का कोई एहसास नहीं होता है, क्योंकि उसमें वो भगवान का ही स्मरण करता रहता है, और आनंदित रहता है, इस संबंध में हनुमान जी रामचरित मानस में कहते हैं, कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई जब तब सुमिरन भजन न होई।। यानि विपत्ति तो तभी है , जब भगवान का भजन न हो। अब ये बात भी आपको तभी समझ में आएगी तब आप निरंतर सुमिरन नहीं करते हैं। अगर आप सुमिरन करते हैं, तो आपको कभी कष्ट का अनुभव ही नहीं होगा, भक्ति आपको वैसे ही कष्टों से पार लगा देगी जैसे आप उस सड़क पर चल रहे हों जिस पर अगर बहुत सारे गड्ढे हों , लेकिन सामान्य व्यक्ति को उसी तरह कष्ट होगा जैसे उस सड़क से सायकिल पर चलने से होता है, लेकिन जो भक्ति करता है, वो वैसे ही पार कर जाता है, जैसे कार में बैठा हो, भक्ति आपके जीवन में यही करती है,आपके जीवन को आनंद और उत्साह से भऱ देती है।
उसके अलावा अगर आप और समझना चाहते हैं, तो स्वामी विवेकानंद जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस जो कि काली माता के भक्त थे उनके जीवन से समझते हैं, रामकृष्ण परमहंस जी को गले का कैंसर था जिसके कारण वो भोजन भी नहीं ग्रहण कर सकते थे, एक बार उनके एक शिष्य ने उनसे कहा कि आप भोजन नहीं कर पाते तो काली मां से ही बीमारी ठीक करने को क्यों नहीं कहते , और उन्होने बात मानकर काली मां से कहा कि कि वो कैंसर के कारण खाना नहीं खा पाते तो काली मां बोली तुम दुनिया के तमाम प्राणियों के मुख से भोजन क्यों नहीं करते ।
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