भगवद्गीता कोट्स, प्रकृति, पुरुष तथा चेतना

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, परमात्मा समस्त इन्द्रियों के मूल स्त्रोत हैं, फिर भी वे इन्द्रियों से रहित हैं। वे समस्त जीवों के पालनकर्ता होकर भी अनासक्त हैं, वे प्रकृति के गुणों से परे हैं, फिर भी वे भौतिक प्रकृति के समस्त गुणों के स्वामी हैं।

उनके हांथ, पांव, आंखें, सिर तथा मुह तथा उनके कान सर्वत्र हैं, इस प्रकार परमात्मा सभी वस्तुओं में व्याप्त होकर अवस्थित हैं।

परमात्मा समस्त प्रकाशमान वस्तुओं के प्रकाशस्त्रोत हैं। वे भौतिक अंधकार से परे हैं और अगोचर हैं। वे ज्ञान हैं, ज्ञेय हैं, ओर ज्ञान के लक्ष्य हैं। वे सबके हृदय में स्थित हैं।

प्रकृति तथा जीवों को अनादि समझना चाहुए, उनके गुण विकार तथा गुण प्रकृतिजन्य हैं।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, जो व्यक्ति परमात्मा को सर्वत्र तथा प्रत्येक जीव में समान रूप से वर्तमान देखता है, वह अपने मन के द्वारा अपने आपको भ्रष्ट नहीं करता। इस प्रकार दिव्य गन्तव्य को प्राप्त होता है।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, जो यह देखता है कि सारे कार्य शरीर द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं, जिसकी उत्पत्ति प्रकृति से हुई है, और जो देखता है कि आत्मा कुछ भी नहीं करता, वही यथार्थ में देखता है।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, जब विवेकवान व्यक्ति विभिन्न भौतिक शरीरों के कारण विभिन्न स्वरूपों को देखना बंद कर देता है, और यह देखता है कि किस प्रकार से जीव सर्वत्र फैले हुए हैं, तो वह ब्रह्म बोध को प्राप्त होता है।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, शाश्वत दृष्टिसम्पन्न लोग यह देख पाते हैं, सकते हैं, कि अविनाशी आत्मा दिव्य, शाश्वत तथा गुणों से अतीत है। हे अर्जुन भौतिक शरीर के साथ सम्पर्क होते हुए भी आत्मा न तो कुछ करता है और न लिप्त होता है।.

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, य़द्यपि आकाश सर्वव्यापी है, किंतु अपनी सूक्ष्म प्रकृति के कारण, किसी वस्तु से लिप्त नहीं होता। इसी तरह ब्रह्मदृष्टि में स्थित आत्मा, शरीर में स्थित रहते हुए भी  शरीर से लिप्त नहीं होता।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, जिस प्रकार सूर्य अकेले इस सारे ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार शरीर के भीतर स्थित एक आत्मा सारे शरीर को चेतना से प्रकाशित करता है।

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