काम वासना
काम वासना

काम वासना को कैसे नियंत्रित करें?

काम वासना को कैसे नियंत्रित करें, इसका उत्तर हम वृंदावन के प्रसिद्ध संत श्री प्रेमानंद जी के प्रवचन से समझते हैं, प्रेमानंद जी एक ऐसे संत हैं जिनसे मिलने हर कोई आता है, चाहे वो कोई प्रसिद्ध नेता हो अभिनेता हो सभी लोग अपने प्रश्न लेकर उनको पास आते हैं और वो सभी के प्रश्नो का उत्तर बड़ी सरलता से देते हैं, एक बार एक व्यक्ति ने प्रेमानंद जी से पूंछा कि कई बार मेरे मन में गलत ख्याल आते हैं, लेकिन उन पर नियंत्रण नहीं हो पाता क्या करूं तो इसका जवाब देते हुए प्रेमानंद जी कहते हैं, कि काम आता कैसे है, वास्तव में काम, कामी लोगों की संगति करने से , सुनने से दृश्य देखने से आता है, फिर मन इसका चिंतन करता है, तो काम की चिंगारी आग बन जाती है, और फिर आदमी किसी काम का नहीं रहता है, क्योंकि उसमें काम सवार हो गया, औऱ ये अधिकांश लोगों के साथ होता है, लेकिन किसी को पता नहीं लगता कि उसके अंदर काम है, लेकिन जब सतसंग करता है, तब पता लगता है कि उसके अंदर काम है। जैसे हमने किसी अधर्मी के अधर्म के बारे में सुना तो हमें गुस्सा आया कोई भावनात्मक दृश्य देखा सुना तो वैसी भावना हो गई वैसी ही ये काम वासना है, लेकिन जब तक हम इसमें तादात्म नहीं होते ये हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता और इसका इलाज कोई दवा नहीं है, ये आध्यात्म से मिटते हैं, अज्ञान नष्ट होने पर ही कामना नष्ट होती है, जब आप ये समझ गए कि काम मेरे में नहीं है, काम है, अंत:करण में और उसकी क्रिया होती है इन्द्रियों में और शरीर में दिखाई देती है, अंत:करण में तादात्म होने के काऱण। जब तक मन जीता नहीं जाता तब तक काम नहीं जीता जा सकता , यही हमारा सबसे बडा शत्रु है, एक क्षण में ऐसी क्रिया करा देता है कि नाश हो जाता है, इस मन में और हममे बहुत अंतर है, ये हमसे पॉवर ले रहा है, औऱ इस रोग का शमन केवल आध्यात्म में है कोई भगवतप्राप्त महापुरुष को वचन सुनकर उनका मनन करके और विचार के द्वार ही इसको नष्ट किया जा सकता है, मन में जब काम का स्फुरण हो क्योंकि पहले संकल्प नहीं बनता तो जब काम आए तो जैसे कोई हमें अनावश्यक वस्तु दे और हम ना लेना चाहे तो मना कर देतें है, वैसे ही जब काम आए तो खुद से कहना है नहीं ये गलत है, केवल धर्मयुक्त काम के लिए भगवान केवल आज्ञा कर रहे हैं। काम को नियंत्रित करने के निरंतर नाम जपो तो आप मन को नियंत्रित कर लेगें औऱ काम को परास्त कर पाएंगे।

प्रेमानंद जी का कहना है मन और इन्द्रियों के नियंत्रण से गुरु वचनों के द्वारा ही इस काम वासना पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

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