लोग रिश्ते तोड़ना पसंद करते हैं, पर अपना अहं नहीं छोड़ना चाहते ।
लोग बातों में तर्क कर लेते हैं, पर भावनाओं को समझने की कभी कोशिश नहीं करते।
खुद को नियंत्रित करने की जगह दूसरों पर पूरा नियंत्रण करना चाहते हैं।
कर्म से ज्यादा बातों से दूसरों को समझाने की कोशिश करते रहते हैं।
परिस्थितियों को न समझते हुए दूसरे से आशाएं बहुत करते हैं, जिसको पूरा करना अंसभव हो जाता है।
अपनी शिकायतें और समस्याएं किसी तीसरे व्यक्ति को बताने लगते हैं, जिससे दूसरे का हस्तक्षेप उनकी जिंदगी में बढ़ जाता है।
हर चीज में परफेक्शन ढूढने लगते हैं , जो कभी संभव नहीं हैं।
अपना सलाहकार तीसरे को बना लेते हैं,जो वास्तविकता नहीं जानता।
सामूहिक निर्णय को व्यक्तिगत तौर पर लेने की कोशिश करना।
छोटी छोटी बातों से प्रभावित होकर जीवन के ब़ड़े फैसले ले लेते हैं, जिससे रिश्ता टूट जाता है।
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