ये कहानी एक शिक्षक की है, जो एक स्कूल में पढ़ाता था, स्कूल में पढ़ाने के साथ उसने सोचा कि वह खुद का स्कूल खोलेगा , जिसके लिए उसने शिक्षक नियुक्त किये , बिल्डिंग किराये पर लिया , और स्कूल का प्रचार करने लगा , जब आसपास के लोगों को पता चला कि शिक्षक स्कूल खोल रहा है, तो लोगों ने उसको तरह तरह की सलाह देना शुरू कर दिया, कि आपके आसपास बहुत सारी स्कूल है, आपको बच्चे नहीं मिलेंगे, आप स्कूल नहीं चला पाओगे, शिक्षक लोगों की प्रतिक्रिया से कभी कभी निराश भी हो जाता, लेकिन काफी पैसा लगा देने की वजह से वो स्कूल का काम देखता रहता , ऐसा काफी दिनो तक चलता रहा, कभी कभी शिक्षक को लगता कि स्कूल का काम रोक देना चाहिए, क्योंकि हो सकता है, लोग ,सही कह रहे हों, कुछ महीनो बाद जब स्कूल का काम पूरा हो गया , सारे संसाधन जुटा लिए गये, और जब वह एडमिशन के लिए लोगों से मिलना शुरू किया तो आसपास के कुछ लोगों ने उसका और विरोध करना शुरू कर दिया कि ये स्कूल अच्छा नहीं है, और लोगों को स्कूल में दाखिला लेने के लिए मना करने लगे,और धीरे धीरे आसपास के स्कूल वाले भी उसका जमकर विरोध करने लगे, और इस बार शिक्षक पूरी तरह से निराश हो गया, और स्कूल को किसी दोस्त को देने का निश्चय कर लिया,जब वो अपने दोस्त के पास गया और सारी कहानी बताई तो दोस्त ने कहा कि तुम ये बताओ कि आते समय रास्ते में ट्रैफिक मिला कि नहीं, कितने लोग मिले, कुछ लोग तो तुम्हारे सामने से भी गुजरे होंगे, और कितने वाहन मिले,शिक्षक ने कहा नहीं, क्योंकि मेरा पूरा ध्यान बाइक चलाने पर था, और मेरा तुमसे मिलना जरूरी था, इसलिए मैने किसी की भी परवाह न करते हुए केवल बाइक चलाने पर ध्यान दिया, लेकिन तुम ये सब क्यों पूंछ रहे हो, तो उसके दोस्त ने कहा , इसी में तुम्हारे सवाल का जवाब है,जिस तरह तुमने कुछ ट्रैफिक से बचकर और पूरा ध्यान बाइक चलाने में लगाकर यहां तक पहुंचे उसी तरह, कुछ लोगों की बातों को नजर अंदाज करो, और अपनी पूरी क्षमता केवल स्कूल चलाने में लगाओ, लोग तुम्हारा विरोध करना धीरे धारे छोड़ देंगे, अब शिक्षक लौट आया और वो लोगों की बातों को नजर अदांज करने लगा, और अपनी पूरी क्षमता केवल स्कूल के संचालन में लगाने लगा,और कुछ महीनो में ही उसका विरोध होना कम हो गया और अब उसने कई सारे बच्चों का दाखिला भी कर लिया।
दोस्तों ये कहानी हमें सिखाती कि हमें लोगों की बातों से ज्यादा खुद के लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए, और हमें विरोधियों की ताकत से ज्यादा खुद को मजबूत रखना चाहिए, तभी हम सफल होंगे, क्योंकि लोग अक्सर विरोध उसी का करते हैं, जो कमजोर होता है।
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