आज का सुविचार

आज का सुविचार [ Motivation in hindi] [Motivational lines in hindi]

1- आप जो भी कर रहे हैं, उसका कुछ न कुछ परिणाम अवश्य है, इसलिए कुछ करने से पहले परिणाम के बारे में जरूर सोचें।

2- अपने कल की चिंता में आज व्यर्थ मत करिए, क्योंकि इस तरह से आप अपना वर्तमान खराब कर रहे हैं।

3- इंसान को दूसरों के चिंतन से ज्यादा खुद की तरक्की में समय लगाना चाहिए, क्योंकि दूसरों के चिंतन से केवल समय खराब होता है।

4- अपने हक के लिए संघर्ष करें, लेकिन साथ साथ दूसरों के हित के बारे में भी सोचें।

5- हमेशा खुश रहने की आदत डालिए, क्योंकि जिस इच्छा से आप सुख की उम्मीद कर रहे हैं, दुनिया में वो इच्छा कई लोगों की पूरी हो चुकी है, फिर भी लोग दुखी ही हैं।

6- मन शांत कैसे रखें?

1- रात में सोने से पहले 20 मिनट भगवान का नाम जप कर, या भगवद्गीता पढ़ कर सोएं।

2- भोजन करते समय केवल भगवान का या उनके नाम

का चिंतन करें।

3- चिल्लाकर बात न करें।

4- अनावश्यक न बोलें।

5- दूसरों से तुलना न करें।

6- कुछ मिनट तक आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ने की आदत डालें।

7- मन की सलाह न चलें बल्कि उसको शिक्षित करें।

7-इंसान अपने ही मन की उपज है, जैसा वो सोचता है, वैसा बनता जाता है।

8- आप समस्याओं से तभी हारते हैं, जब आपका मन अशांत होता है, जबकि शांत में अनगिनत संभावनाएं हमेशा रहती हैं।

9- कभी दूसरों के ज्यादा भरोसे मत बैठिए, क्योंकि कोई कितना भी आपका प्रिय होगा, हर समय वो चाहकर भी आपको उपलब्ध नहीं हो सकता ।

10- अपने मन की व्यथा को शांत करने के लिए भगवान की कथाएं, भगवान का नाम जप , सेवा व आध्यात्मिक ग्रंथों का स्वाध्याय करिए।

11-जिसको वास्तव में सुख चाहिए, उसको शिकायतें करना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि शिकायतें आपके मन को इतना कमजोर बना देती हैं, कि आप अच्छा सोच ही नहीं पाते।

12- लोगों के जीवन में शांति इसलिए नहीं बची, क्योंकि लोग अब केवल पैसा कमा रहे हैं, और शांति के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे।

13- जब कभी आपको ये लगे कि ईश्वर ने आपको कुछ नहीं दिया, तो एक बार ये जरूर सोचिए कि क्या जितना आपके पास है, सभी के पास है, क्योंकि संसार में बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं, जिनको भोजन भी बड़े मुश्किल से मिलता है।

14- जिसको जीवन में ये लगता है, कि वो सभी को खुश रख सकता है, वास्तव में वो ये भी भूल जाता है, कि खुद को खुश कैसे रखें।

15-जिसका धन गया , उसका कुछ नहीं गया, जिसका स्वास्थ गया उसका बहुत कुछ गया, लेकिन जिसका चरित्र गया उसका सबकुछ चला गया।

16-अपने शरीर और मन दोनो का पूरा ध्यान रखें, क्योंकि आपके पास शरीर भी एक है, और मन भी एक है, और दोनो को जीवन भर चलाना है।

17-मन ही इंसान का सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र भी है, जिसने मन को नियंत्रित कर लिया उसके लिए वह मित्र की तरह काम करता है, और जिसने वश में नहीं किया उसके लिए मन शत्रु है।

18- जब जीवन में आप अकेले हों, तो समझ जाइए कि अब जीवन में बहुत बड़ा बदलाव होने वाला है।

19- मुसीबतें आपको डराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुदृढ़ बनाने के लिए आती हैं।

20- कुशलता कभी भी धोखे से नहीं मिलती, बल्कि बार बार की असफलता आपको कुशल बना देती है।

21- जीवन में संगति के चुनाव में सावधानी रखिए, क्योंकि आपकी संगति से ही आपका जीवन बनता है।

22-जैसा आपका चिंतन होता है, वैसा ही आपका जीवन होता है, क्योंकि जैसा चिंतन करते है, वैसे ही आपके कर्म हो जाते हैं।

23-मौैन रहना सीखिए, क्योंकि मौन से ही इंसान अपने अंदर देख पाता है, जबकि शब्द आपको बाहरी दुनिया में फंसा कर रखते हैं।

24-अपने जीवन की तुलना दूसरों के जीवन से कभी मत करिए, केवल निराशा ही हांथ लगेगी, क्योंकि इस दुनिया में सभी के कर्म अलग अलग हैं, और सभी में खूबी भी अलग- अलग है, और ये भी हो सकता है, जो आपको बहुत सम्पन्न दिख रहा हो, अंदर से वो बहुत दुखी हो।

25-लोगों के पतन का इस समय सबसे बड़ा कारण ये हैे, कि वो अपना आदर्श पैसे वाले को बना बैठे हैं, औऱ वैसी ही जीवन शैली जीने में लगे हैं, जबकि पैसे वालों से केवल ये सीखना चाहिए, कि पैसे ईमानदारी से कैसे कमाएं न कि आनंदमय जीवन कैसे जिएँ।

26-दुनिया में सबसे ज्यादा भ्रमित आपको वो व्यक्ति करता है, जो हमेशा आपके अनुकूल बाते करता हैं, और आप हमेशा खुद को श्रेष्ठ समझकर खुद के दोषों में सुधार नहीं करते

27-जीवन में आगे बढ़ने के लिए आपको पसंद ना पसंद से ऊपर उठकर केवल वो कार्य करना होगा जो सही है, अन्यथा पसंद नापसंद आपको कभी आगे नहीं बढ़ने देगी।

28- तनाव से बचने के लिए भगवान का नाम, शास्त्र स्वाध्याय और सतसंग ही औषधि है, अन्य कोई मनोरंजन का साधन, और नशा आपको और तनाव ग्रसित कर देगा।

29-जीवन में आर्थिक स्थिति अच्छी हो या न हो, लेकिन मानसिक स्थिति अच्छी रखिए, क्योंकि अगर मानसिक स्थिति अच्छी है, तो आप धन के कमी होने पर भी अच्छा जीवन जी सकते हैं।

30-य़दि आपको लगता है, कि आप वास्तव में बहुत ही अच्छा जीवन जी रहें हैं, तो सबसे पहले खुद से ये पूंछिए कि क्या आप वास्तव में खुश हैं, और अगर नहीं हैं, तो सबसे पहले खुश रहने की कला सीखिए, क्योंकि खुशी ही आपके जीवन को परिभाषित करती है।

31-जितने लोग दूसरों को कॉपी करके अपना जीवन जी रहे हैं, वो केवल अपना जीवन संकट में डाल रहे हैं, क्योंकि ऐसा करके वो सही और गलत का चुनाव करना भूल रहे हैं।

32-जिसको शांति चाहिए उसको अपने जीवन में आई हर स्थिति में संतुष्ट रहना सीखना पड़ेगा, और जिसको रिश्ते चाहिए, उसको दूसरों से उम्मीद छोड़नी पड़ेगी।

33-क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि खराब होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तो तर्क नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है।

34-अगर मन को ज्यादा सोचने की आदत हो गई है, तो आप उस आदत को भगवान की लीला सोचने औऱ नाम सोचने की आदत लगा दीजिए मन शांत रहने लगेगा।

35- जिसको वर्तमान का आनंद लेना है, उसको भूतकाल का शोक और भविष्य की चिंता छोड़नी ही पड़ेगी।

36- ये बातें खुद से नहीं कहनी चाहिए- 1- मेरा समय खराब चल रहा है। 2- मैं बहुत अकेला हू्ं। 3- मैं कभी सफल नहीं हो सकता। 4- मैं किसी लायक नहीं हूं। 5- पता नहीं कल क्या होगा। 6- मेरे साथ ही हमेशा गलत क्यों होता है।

37- ईश्वर का स्मरण एक ऐसा बीमा है, जिसको अपनाने से आप कभी दुखी नहीं होते।

38- जब आपको हर व्यक्ति में दोष दिखने लगे और खुद में अच्छाइयां दिखने लगे, तो समझिए कि अब जीवन दुखमय हो जाएगा, उसके विपरीत अगर आपको खुद के दोष दिखने लगे तो समझिए कि अब आप जीवन आपका बहुत अच्छा होने वाला है।

39-जब आप भगवान का स्मरण करते हैं, तो दुनिया की बड़ी से बड़ी विपत्ति भी आप पर प्रभाव नहीं डाल पाती , लेकिन जब भगवान का स्मरण नहीं होता उस समय छोटी से छोटी विपत्ति भी आपको पहाड़ जैसी लगती है।

40-धन इंसान को तभी तक सुख देता है, जब तक इंसान उसको केवल संसाधन समझता है, लेकिन जैसे ही उसको जीवन समझा जाने लगता है, तो धन की कमी निराशा पैदा करती है, और अधिकता घमंड पैदा करती है, जो विनाश का कारण बनती है।

41- कौैन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है, इससे आप जितना दूर रहेंगे, उतना ही खुद के लिए अच्छा कर पाएंगे।

42-दूसरों का हक छीन कर तरक्की करने वालों को दूसरों के हिस्से का दुख भी सहने को तैयार रहना चाहिए, क्योंकि प्रकृति हैसियत देखकर नहीं बल्कि कर्म देखकर निर्णय करती है।

43-अगर आपने जीवन में खूब तरक्की की लेकिन फिर भी निराशा और असंतुष्टि भरा जीवन जी रहे हैं, तो वास्तव में आपकी सारी तरक्की व्यर्थ है, बेहतर है, कि जीवन में खुश और संतुष्ट रहने का प्रय़ास करिए।

44-जीवन में खुश रहने की वजह का इंतजार मत करिए, बल्कि खुश रहने की आदत डालिए, क्योंकि खुश रहने की वजह का अस्तित्व अस्थाई है।

45-जीवन में नकारात्मक कल्पनाएं जरूरी नहीं है, कि वास्तविक हों, लेकिन उनका आपके मन पर असर वास्तविकता में होता है।

46-किसी की हैसियत का अंदाजा उसके अच्छे कपड़े और महगी गाडियां देखकर मत लगाइए, क्योंकि इंसान की हैसियत उसके चरित्र, व्यवहार और सद्विचारों से आंकी जाती है।

47-मूर्ख व्यक्ति दूसरों पर हंसते है, और बुद्धिमान व्यक्ति खुद पर हंसते हैं। – ओशो

48- ईश्वर का विस्मरण ही आपको दुख का अनुभव होने देता है।

49- आपके जीवन का सारा सुख-दुख विचारों के अस्तित्व के कारण ही होता है, जैसे ही आप विचारों से दूरी बना लेगें आपको अनुभव होना बंद हो जाएगा।

50- इंसान जिस मन के विचारों को अपना मानकर चलता है, वही विचार उसकी दुर्गति कराते हैं, लेकिन फिर भी वो नहीं समझ पाता कि उसका मन ही उसका दुश्मन है।

51-जीवन में चीजों के पीछे भागने से अच्छा है, अपनी योग्यता बढ़ाइए, अन्यथा आपको केवल निराशा ही हांथ लगेगी।

52- भविष्य की चिंता और बीते हुए कल के बारें ज्यादा मत सोचिए, क्योंकि ऐसा करके आप अपना वर्तमान भी खराब कर रहे हैं।

53- दूसरों की तरक्की देखकर खुश होना सीख लीजिए, इससे आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी, क्योंकि ईर्ष्या रखने से केवल मन दुखी होगा और कुछ नहीं।

53- भाग्य का रोना छोड़कर इंसान को केवल कर्तव्य का पालन करना चाहिए, क्योंकि भाग्य अपने ही कर्मों की खेती है।

54- न तो हार के लिए दुखी होना चाहिए, न ही जीत की ज्यादा खुशी मनाना चाहिए, क्योंकि जीवन में दोनो का आना-जाना लगा रहेगा, कभी जीत मिलेगी कभी हार।

55- जीवन में अपनी कमजोरियों की स्वीकार्यता रखनी जरूरी है, तभी हम खुद में सुधार कर पाएंगे।

56- लोगों की बातों पर उतना ही भरोसा करिए, जितने में आप खुश रह सकें, क्योंकि लोग उस विषय पर ज्यादा ज्ञान देते हैं, जिस विषय को कम जानते हैं।

57- किसी भी व्यक्ति को उसके प्रश्नों का उत्तर तभी दीजिए, जब उसमें पात्रता हो और आपके प्रति श्रद्धा रखता हो।

58- जीवन की कोई भी राह कठिन नहीं है, हममे केवल विश्वास की कमी है।

59- दूसरों से अपनी तुलना करना खुद को गलत साबित करना है, क्योंकि दुनिया में हर व्यक्ति की अपनी खासियत है, न तो वो आपकी जगह ले सकता है, न आप उसकी जगह ले सकते हैं।

60- जीवन में कभी ऐसा भी हो सकता है, कि आप कुछ स्थितियों को बदलने में सक्षम न हो, लेकिन फिर भी निराश न हों, क्योंकि ऐसी स्तिथियां समय के बदल जाती हैं जैसे मौसम बदलते हैं।

61- रिश्ते टूटने की सबसे बड़ी वजह ये है कि लोग अपनो से ज्यादा अपने रिश्तों की सलाह दूसरों से लेते हैं।

62-लोग आपकी हंसी उड़ाएंगे ये सोचकर अच्छे कार्य करना मत छोड़िए क्योंकि लोगों की हंसी और दुख उनके व्यक्तिगत विचारों के कारण है, उनका आपके जीवन से कोई संबंध नहीं है।

63- जब तक विचारों से अपनापन बनाते रहेंगे, आपका उनके जीवन में प्रभाव बना ही रहेगा।

64- मन को साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है, भगवान का नाम जपना ।

65- दूसरों की गलतियों को माफ करने की आदत डालिए , क्योंकि हम भी दूसरों से यही आशा रखते हैं।

66- ईश्वर की कृपा सभी पर रहती है, लेकिन जो स्वीकार करता है, अनुभव केवल उसी को होता है।

67- प्रेम का दूसरा नाम समर्पण है, लेकिन लोगों ने जरूरतें पूरा करने को प्रेम समझ लिया है, इसीलिए दुखी रहते हैं।

68- कभी किसी के पहनावे और गरीबी का मजाक मत उड़ाइए क्योंकि पहनावा उनकी पसंद है, और गरीबी वो खुद ही नहीं चाहते।

69- जिसके जीवन में दया नहीं है, वह न तो धार्मिक है, न आध्यात्मिक है, न ही वह अच्छा इंसान है।

70- आपका खुशियां आपके चिंतन से ही निर्धारित होती है, जैसा चिंतन होता है, वैसा ही आपका जीवन हो जाता है।

71-बिना कोशिश किए हार मान लेने से अच्छा है, कोशिश करके कुछ हांसिल कर लिया जाए।

72-सफलता को भले ही लोग अच्छा समझते हों, लेकिन बातें हमेशा संघर्ष की ही की जाती है, बेहतर है कि संघर्ष से पीछे न हटें।

73-लोगों को अपने हालात कभी मत बताइए क्योंकि लोग हंसते ज्यादा हैं, हौसला कम देते हैं।

74-अपने जीवन का चुनाव खुद करना सीखिए, अन्यथा लोगों के हिसाब से चुनाव करना पडे़गा।

75- इंसान कभी हालातों से मजबूर नहीं होता वास्तव में वो खुद को मजबूर मान लेता है।

76- लोग आपसे कम और आपके पैसे की ज्यादा इज्जत करते हैं, बेहतर है कि आप उसको खुद की इज्जत न समझें।

77- सबसे आसान काम है, दूसरों को दोष देना , और सबसे मुश्किल काम है, खुद के दोषों को स्वीकार करना।

78- लोगों से अनुकूलता की आशा कभी न करें, क्योंकि लोगों की राय समय के साथ बदलती रहती है।

79- दूसरों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप आपकी जिंदगी को बर्बाद करने के लिए काफी है।

80- जिसने अपनी जुबान पर काबू पा लिया उसने जीवन की बहुमूल्य सफलता हांसिल कर ली।

81- जीवन में खोने पाने जैसा कुछ भी क्योंकि हर चीज समय के साथ आती जाती रहती है।

83- परिस्थितियों को कोसना बंद कर दीजिए, क्योंकि परिस्थितियां आपके ही कर्मों का परिणाम है, आप अपना कर्म बदलिए परिस्थितियां खुद ब खुद बदल जाएंगी।

84- इंसान की बर्बादी का कारण दूसरों ने होकर उसी की आदतें हैं, अगर इंसान अपनी आदतें बदल लेता है तो उसका जीवन सफल हो जाएगा।

85- महान बनने के लिए आपको वो सबकुछ नहीं करना होता जो लोग करते हैं, बल्कि वो करना होता है, जो बेहद जरूरी है।

86-आपका पैसा आपको इलाज दिला सकता है, लेकिन जीवन नहीं दे सकता है, इसलिए पैसे को केवल संसाधन समझें न कि जीवन।

87- अगर आपको लगता है, कि आपके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण पैसा है तो एक बात ध्यान रखिए, कि आप पैसे के लिए वो सबकुछ करने को तैयार हो जाएंगे जो आपको नहीं करना चाहिए औऱ वही आपके दुख का कारण बन जाएगा।

89-अपने हित के लिए दूसरों का हक मत छीनिए, क्योंकि प्रकृति आपके हर कर्मो का हिसाब रखती है, वो आपको जरूर लौटाएगी।

90- जब कभी मन उदास लगे तो लोगों को याद मत कीजिए बल्कि ईश्वर का स्मऱण कीजिए आप खुश महसूस करेंगे।

91- अपने जिंदगी में खुश रहना सीखिए, क्योंकि आपको नहीं पता जैसा आपका जीवन है वैसे जीवन का कुछ लोग सपना देखते हैं।

92- अगर आप किसी से अत्यधिक उम्मीद लगाकर बैठे हैं, तो यकीन मानिए एक दिन आपको अत्यधिक दुख होगा, क्योंकि कोई भी इंसान अपनी क्षमता तक ही आपकी उम्मीद पूरा कर सकता है।

93- रिश्ते निभाने का सबसे अच्छा फार्मूला यही है कि आप उम्मीद रखना छोड़ दें।94

94- जीवन तो अभाव में भी अच्छे से जिया जा सकता है, शर्त केवल इतनी सी है, कि आप मन को शांत रखना सीख जाएं।

95- जीवन उसका शानदार नहीं है, जिसके पास खूब धन है, बल्कि जीवन उसका शानदार है, जिसने हर स्थिति में खुद को खुश रखना सीख लिया है।

96- ईश्वर पर भरोसा उन पंछियों की तरह रखिए जिनके पास संग्रह नहीं रहता है, लेकिन उम्मीद रहती है, कि कल उनका अच्छा होगा।

97- अगर आप ज्यादा सत्यवादी हैं, और उस सत्य से हमेशा ही किसी का नुकसान होता है, तो ऐसे सत्य का कोई मतलब नहीं हैं।

98- ईश्वर का आपके कर्मों पर कोई हस्तक्षेप नहीं है, इसलिए अपने हालातों के लिए ईश्वर को दोष मत दीजिए।

99- ईश्वर पर विश्वास का मतलब ये नहीं है, कि हमेशा आपकी इच्छा पूरी हो, विश्वास का मतलब ये है कि हम उसके हैं, अब वो जैसे चाहे वैसे हमे रखें।

100- इस बात की चिंता में आज व्यर्थ मत करिए कि कल क्या होगा , क्योंकि ऐसा करके आप अपने आज को बर्बाद कर लेंगे।

101-जब इंसान के जीवन का केन्द्र पैसा हो जाता है, तो वह आपके जीवन से खुशी, अपनापन, शांति, दया सब छीन लेता है, फिर इंसान के पास केवल पैसा बचता है, और निऱाशा ।

102- अपने जीवन के पल को दूसरों की निंदा में न गवाएं, क्योंकि इस चक्कर आप अपना समय गवा रहे होते हैं, जो कभी वापिस नहीं आ सकता।

103- जिन लोगों की आदतें लोगों के बारे में बात करने में ही निकल जाती है, और हमेशा सोचते रहते हैं कि लोग आगे कैसे बढ़ रहे हैं।

104- जीवन में सहनशील पहाड़ों की तरह रहिए ताकि जीवन में बारिश की तरह आने वाली छोटी मोटी परेशानियों का आपके जीवन में असर ही न हो।

105- कल सुख आएगी ये मत सोचिए क्योंकि कल आएगा भी कि नहीं इसका भरोसा ही नहीं है।

106- कार्य में निरंतरता जरूरी है, तभी आप आगे बढ़ पाएंगे।

107- किसी भी कार्य का परिणाम एक दिन दिखता है, लेकिन उस कार्य को करने में वर्षों लग जाते हैं।

108- आप जिस भीड़ को अपना मानते हैं, दरअसल वो भीड़ आपके पीछे नहीं आती है, वो तो केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए आती है।

109- लोगों की चिंता में जीवन को बर्बाद मत करिए, क्योंकि आपकी चिंता लोगों को नहीं बदल पाएगी , लेकिन अगर आप ज्यादा चिंता करेंगे तो आपकी स्थिति जरूर खराब हो जाएगी।

110- परिवर्तन से मत डरिए परिवर्तन होता रहेगा, बस खुद के मन को मजबूत रखिए ताकि परिवर्तन आपको प्रभावित न कर पाए।

111- तरक्की करना अच्छी बात है, बस ख्याल ये रही उस तरक्की के लिए किसी बेगुनाह को न सताया जाए।

112- दुनिया में प्रकृति जिस तरह बदल रही है, आने वाले समय बहुत खतरनाक है, लेकिन इंसान फिर भी प्रकृति का दोहन करने के पीछे नहीं हट रहा।

113- जब भी कभी हार मानने लगें तो खुद से पूंछिए कि क्या दुनिया में सभी चीजें आप ही की वजह से चल रही है, अगर नहीं तो फिर हार मत मानिए कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा।

114- परमात्मा की बनाई गई दुनिया में किसी में दोष मत निकालिए क्योंकि आपको दोष दिख रहे होंगे वो आपमें भी होंगे।

115- कोई रोता है अपनो के लिए कोई सपनो के लिए लेकिन अगर वो समझ जाए कि सबका समय होता है, तो रोना ही छूट जाए।

116- खुश रहने में ही जिंदगी का मजा है, क्योंकि दुखी रहने का तो प्रयास ही नहीं करना पड़ता।

117- लोग भले ही सफलती की बात करते हों, लेकिन कहानियां तो संघर्षों की ही मशहूर हुआ करती हैं।

118- मत रुको उलझने देखकर , चलते रहो मंजिलें देखकर , आज न मिली तो कल मिलेगी , तुम्हारा हौंसला देखकर।

119- लोगों से अपनी अहमियत की बात मत करो क्योंकि बात केवल समय की होती है, पहले लोग रेडियो को महत्व देते थे, आज समय मोबाइल का है तो लोग रेडियो की तरफ देखते भी नहीं।

120- कौन किसका ये किसी को नहीं पता, केवल वक्त को ही पता है।

121- रिश्ते पैसे नहीं बल्कि भावनाओं से चलते पैसे से तो व्यापार किया जाता है।

122- मत उलझो मन की उलझनो में ये तो मकडें की जाले की तरह है, जो आपको निकलने ही नहीं देंगी।

123- कल की प्रतीक्षा बेशक करिए, लेकिन आज का सदुपयोग करते हुए क्योंकि कल तो काल के हांथ में है।

124- जो कल में खोया वो बहुत रोया क्योंकि कल तो काल के हांथ में है।

125- गुलाब कि तरह बनाइए अपना किरदार कि भले ही कांटो के बीच में हो लेकिन लोग आपसे मिलना चाहें।

126- दुनिया में सबसे ज्यादा खुशनसीब वही है, जिसके मन में इच्छाएं नहीं हैं क्योंकि वो कभी दुखी नहीं होता।

127- जिस इंसान को परिवर्तन लाने का शौक है, उसको शुरूआत खुद से करनी चाहिए।

128- वक्त सबका आता है, किसी पहले आ जाता है, किसी का इंतजार के बाद।

129- जब आपका संघर्ष चल रहा हो तो मौन रहिए, क्योंकि उस समय आपकी अच्छाई भी लोगों को बुराई ही लगेगी।

130- जीवन में साहस उतना रखिए कि बड़ी से बड़ी बात भी आसानी से सह जाएं, और समझ इतनी रखिए कि छोटी से छोटी बात की गहराई समझ आ जाए।

131-जब आपका समय खराब चल रहा हो, तो अकेले रहिए ताकि आप नकारात्मकता से बचे रहें।

132- लोगों को संसाधन से ज्यादा सांत्वना की जरूरत है।

133- सफर जिंदगी का हो या फिर किसी का मंजिल का संघर्ष तो करना ही पडे़गा।

134- जीवन में अच्छे सपने रखिए लेकिन उन सपनो के बीच अपनो को भी रखिए।

135- अगर आपको कोई बोलने वाला है तो ईश्वर को धन्यवाद कीजिए, क्योंकि वो बाग जल्दी उजड़ जाते है जिनके माली नहीं होते।

136- निंदा करने वालों और निंदा सुनने वालों से दूर रहिए क्योंकि ये दोनो अपने दिमाग में जहर लेकर घूमते हैं।

137- लोग गलत कहते हैं कि सत्य की राह अकेले चलनी पड़ती है, वास्तविकता है कि सत्य अकेला ही सक्षम होता है।

138- जब बुराई ज्यादा बढ़ रही हो, तो ये मत सोचिए कोई बुराई को बढ़ा रहा है, वास्तव में इसका मतलब है कि समाज को बुराई पसंद आ चुकी है।

139- लोगों के दिमाग में जबसे पैसे ने जगह ले ली तबसे जीवन में अकेलापन बढ़ गया है, क्योंकि पैसे की जगह केवल जेब में होती है।

140- दूसरों को समझाने को कोशिश में अपना समय नष्ट न करें, क्योंकि यहां समझदार तो सभी हैं, पर उनको करना लगत ही है।

आज का सुविचार

141- वो जिनके बहुत चर्चे होते हैं जमाने में वो अक्सर अकेले पाए जाते हैं, क्योंकि भीड़ केवल मतलब से आती है।

142- आजकल लोग चेहरे पर ज्यादा विश्वास करते हैं, इसलिए धोखा खाना भी आम हो गया है।

143- संसार में रहिए लेकिन वैसे रहिए जैसे पानी में कमल रहता है, दिखता पानी के साथ है लेकिन अस्तित्व अलग है।

144- जीवन की पुरानी घटनाओं का जिम्मेदार मत ठहरिए, जिन्दगी नई है नया रास्ता बनाइए और चलते रहिए।

145- किसी के लिए व्यर्थ की चिंता मत करिए, जब समय आएगा सब सही हो जाएगा।

146- कर्म कभी गलत करिए, क्योंकि आप तो भूल जाएंगे लेकिन कर्म का परिणाम आपको हमेशा याद रखता है।

147- जीवन की विजेता वही है, जिसने जीवन में खुद को सम्भालना सीख लिया, क्योंकि लड़खड़ाते तो सभी हैं।

148- संसार की उपलब्धियां आपको इज्जत तो दिलवा सकती हैं, लेकिन सुकून नहीं।

149- ईश्वर की सबसे अद्भूत रचना मनुष्य है, लेकिन अफसोस मनुष्यता ही गिरती जा रही है।

150- जीवन की सबसे प्यारी बात यही है, कि कैसा भी है गुजर ही जाता है।

चाणक्य नीति

151- आपत्ति निवारण के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए , धन से भी स्त्री की रक्षा करनी चाहिए, सबकाल में स्त्री और धनो से भी अपनी रक्षा करना उचित है।

152- विपत्ति निवारण के लिए धन की रक्षा करना उचित है, क्योंकि श्रीमानो को भी आपत्ति आती है, कदाचित दैवयोग से और चंचल होने से लक्ष्मी भी नष्ट हो जाती है।

153- जिस देश में न आदर न जीविका, न बन्धु न विद्या का लाभ है, वहां वास नहीं करना चाहिए।

154- धनिक, वेद का ज्ञाता – ब्राह्मण, राजा, नदीं और पांचवा वैद्य ये पांच जहां विद्यमान न हों , वहां एक दिन भी वास नहीं करना चाहिए।

155- जीविका, भय़, लज्जा, कुशलता, देने की प्रकृति जहां ये पांच नहीं हैं, वहां के लोगों के साथ संगति नहीं करनी चाहिए।

156- काम में लगाने पर सेवकों को, दुख आने पर बान्धवो की, विपत्ति काल में मित्र की और वैभव के नाश होने पर स्त्री की परीक्षा हो जाती है।

157- आतुर होने पर, दुख होने पर, काल पड़ने पर, बैरियों से संकट आने पर राजा के समीप और श्मशान में जो साथ रहता है, वही बन्धु है।

158-जो निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित की सेवा करता है, उसकी निश्चित वस्तुओं का नाश हो जाता है, अनिश्चित तो नष्ट है ही।

159- नदियों का, शस्त्रधारियों का, नखवाले और सींगवाले, स्त्रियों में और राजकुल पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

160-विष में ले भी अमृत को, अशुद्ध पदार्थों से भी सोने को, नीच से भी उत्तम विद्या को, और दुष्ट कुल से भी स्त्रीरत्न को लेना योग्य है।

161- पुरुष से भी स्त्रियों का आहार दूना, लज्जा चौगुनी, साहस छ: गुना और काम आठ गुना अधिक होता है।

162- भोजन के योग्य पदार्थ और भोजन की शक्ति, सुंदर स्त्री और रति की शक्ति ऐश्वर्य और दानशक्ति इनका होने थोड़े तप का फल नहीं है।

163- जिसका पुत्र वश में रहता है, औऱ स्त्री इच्छा के अनुसार चलती है, जो संतोष रखता है उसको स्वर्ग यहीं है।

164-वही पुत्र है जो पिता का भक्त है, वही पिता है जो पालन करता है, वही मित्र है जिस पर विश्वास है,वही स्त्री है जिससे सुख प्राप्त होता है।

165-आंख के ओट होने पर काम बिगाड़े, सन्मुख होने पर मीठी मीठी बात बनाकर कहे ऐसे मित्र को मुहड़े पर दूध से और विष से भरे घड़े के समान छोड़ देना चाहिए।

166- कुमित्र पर विश्वास तो किसी प्रकार नहीं करना चाहिए और सुमित्र पर भी विश्वास न करें इसका कारण है कि, कदाचित मित्र रुष्ट हो जाए तो गुप्त बातों को प्रसिद्ध कर दे।

167- मन से सोचे हुए कार्य का प्रकाश वचन से न करें, किंतु मंत्र से उसकी रक्षा करें और गुप्त ही उस कार्य में काम में लावें।

168- मूर्खता दुख देती है, और युवापन भी दुख देता है, परंतु दूसरे के गृह का वास तो बहुत ही दुख देता है।

169-सब पर्वतों पर माणिक्य नहीं होता और मोती सब हांथियों में नहीं मिलता, साधुलोग भी सब स्थानो में नहीं मिलते और सब वन में चंदन नहीं होता।

170- बुद्धिमान लोग लड़कों को नाना प्रकार की सुशीलता में लगावें, इसका कारण है कि नीति के जानने वाले यदि शीवनान हों तो कुल में पूजित होता है।

171- वह माता शत्रु और पिता बैरी है जिसने अपने बालक को न पढ़ाया इस कारण वे सभा में ऐसे शोभते जैसे हंसो के बीच बकुला।

172- दुलारने से बहुत दोष होते हैं और दंड देने से बहुत गुण , इस हेतु पुत्र और शिष्य को दण्ड देना उचित है लालना नहीं ।

173- स्त्री का विरह, अपने जनो से अनादर, युद्ध करनके बचा शत्रु , कुत्सित राजा की सेवा, दरिद्रता और अविवेकियों की सभा ये बिना आग ही शरीर को जलाते हैं।

174- नदी के तीर के वृक्ष दूसरों के गृह में जाने वाली स्त्री, मंत्रीरहित राजा निश्चचय ही शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।

175- वैश्या निर्धन पुरुष को, प्रजा शक्तिहीन राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को और अभ्यागत भोजन करके घर छोड़ देते हैं।

176- ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यज्ञमान को त्याग देते हैं, शिष्य विद्या प्राप्त होने पर गुरू को, वैसे ही जले हुए वन को मृग छोड़ देते हैं।

177- जिसका आचरण बुरा है, जिसकी वृति पाम में रहती है, बुरे स्थान में बसने वाला औऱ दुर्जन पुरुषों की मैत्री जिसके साथ की जाती है, वह नर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

178- समानजन में प्रीति शोभती है और सेवा राजा की शोभती है, व्यवहार में बनियाई और सुंदर स्त्री घऱ में शोभा देती है।

179-आचार कुल को बतलाता है, बोली देश को जनाती है, आदर प्रीति का प्रकाश करता है, शरीर भोजन को जताता है।

180- कन्या को श्रेष्ठ कुलवाले को देना चाहिए, पुत्र को विद्या में लगाना चाहिए, शत्रु को दुख पहुंचाना उचित है और मित्र को धर्म का उपदेश करना चाहिए।

181- दुर्जन और सर्प इनमें से सर्प अच्छा है दुर्जन नहीं इस कारण कि सांप काल आने पर काटता है दुर्जन पग पग में।

182- राजा लोग कुलीनो का संग्रह करते हैं कि वे आदि अर्थात विपत्ति में राजा को नहीं छोड़ते।

183- समुद्र प्रलय में अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं औऱ सागर भेद की भी इच्छा ऱखते हैं, परंतु साधु लोग प्रलय होने पर भी अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ते ।

184- मूर्ख को दूर करना उचित है, इस कारण कि देखने में वह मनुष्य है यथार्थ देखें तो दो पांव का पशु है।

185- कोकिलों की शोभा स्वर है, स्त्रियों की शोभा पतिव्रत, कुरूपों की शोभा विद्या है, तपस्वियों की शोभा क्षमा है।

186- उपाय करने पर दरिद्रता नहीं रहती, जपने वाले को पाप नहीं रहता, मौन होने से कलह नहीं होता और जागने वालों के निकट भय नहीं रहता।

187- कुल के निमित्त एक को छोड़ना चाहिए, ग्राम के हेतु कुल का त्याग उचित है, देश के अर्थ ग्राम का और अपने अर्थ पृथ्वी का अर्थात पृथ्वी का त्याग उचित है।

आज का सुविचार

188- समर्थ को कौन वस्तु भारी है, काम में तत्पर रहने वाले को क्या दूर है और सुंदर विद्यावालों को कौन विदेश है, प्रियवादियों को अप्रिय कौन है।

189- एक भी अच्छे वृक्ष से जिसमें सुंदर फूल और गंध है ऐसे सब वन सुवासित हो जाता है जैसे सुपुत्र से कुल।

190- आग से जलते हुए एक ही लकड़ी के वृक्ष से वह बन ऐसे जल जाता है, जैसे कुपुत्र से कुल।

191-शोक संताप उत्पन्ऩ करने वाले उत्पन्न बहुपुत्रो से क्या ? कुल को सहारा देने वाला एक ही पुत्र श्रेष्ठ है।

192-पुत्र को पांच वर्ष तक दुलारें उपरांत दस वर्ष ताड़न करें सोलवें वर्ष प्राप्ति होने पर पुत्र के साथ मित्र समान आचरण करें।

193-उपद्रव उठने पर शत्रु के आक्रमण करने पर भयानक अकाल पड़ने पर खलजन के संग होने पर जो भागता है वह जीवता रहता है।

194- जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते वहां अन्न संचित रहता है, जहीं स्त्री पुरुष में कलह नहीं होता वहां लक्ष्मी आपही विराजमान रहती है।

195-यह निश्चय है कि आयु, कर्म, धन विद्या और मरण ये पांचो जब जीव गर्भ में रहता है, तभी लिख दिए जाते हैं।

196- मछली, कछुई और पक्षी ये दर्शन, ध्यान और स्पर्श से बच्चों को सर्वदा पालती हैं वैसै ही सज्जनो की संगति।

197- विद्या में कामधेनु के समान गुण है इस कारण कि अकाल में भी फल देती है, विदेश में माता के समान है, विद्या को गुप्त धन कहते हैं।

198- एक ही गुणी पुत्र श्रेष्ठ है सो सैकड़ों गुण रहितों से क्या ? एक ही चंद्र सारे अंधकार को नष्ट कर देता है, सहस्त्र तारे नहीं।

199- संसार के ताप से जलते हुए पुरुषों के वविश्राम हेतु तीन है, लड़का, स्त्री और सज्जनों की संगति।

200- राजा लोग एक ही बार आज्ञा देते हैं, पंडित लोग एक ही बार बोलते हैं, कन्या का दान एक ही बार होता है।

201- अकेले में तप दो से पढ़ना, तीन से गाना, चार से पंथ में चलना, पांच से खेती और बहुतों से युद्ध भलीभांति बनते हैं।

202- वही भार्या है, जो पवित्र और चतुर है जो पतिव्रता है, जिस पर पति की प्रीति है वही भार्या है जो सत्य बोलती है अर्थात दान मान पोषण पालन के योग्य है।

202- निपुत्री का घऱ सूना है, बन्धु रहित दिशा शून्य है, मूर्ख का हृदय शून्य है औऱ सर्वशून्य दरिद्रता है।

203- बिना अभ्यास से शास्त्र विष हो जाता है, बिना पचे हुए भोजन विष हो जाता है, दरिद्र को गोष्ठी विष और वृद्ध को युवती विष जान पड़ती है।

204-दयारहित धर्म को छोड़ देना चाहिए, विद्या विहीन गुरु का त्याग कर देना चाहिए, जिसके मुह से क्रोध प्रगट होय ऐसी भार्या को अलग करना चाहिए , और बिना प्रीति बांधवो का त्याग विहित है।

205- स्त्री का गुरू पति ही है, अभ्यागत सबका गुरू है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इनका गुरू अग्नि है, और चारो वर्णों में गुरु ब्राह्मण है।

206- घिसना, पीटना, काटना, तपाना इन चार प्रकारों से जैसे सोने की परीक्षा की जाती है वैसे ही दान, शील, गुण, और आचार इन चारों प्रकार से पुरुष की परीक्षा की जाती है।

207- जब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक भय नहीं आय़ा, और आए हुए भय पर प्रहार करना उचित है।

208-जिसको किसी विषय की वांछा नहीं होगी वह किसी विषय का अधिकारी नहीं होगा, जो कामी नहीं होगा वह शरीर की शोभा करने वाली वस्तु में प्रीति नहीं रखेगा, जो चतुर नहीं होगा वह प्रिय नहीं बोल सकेगा, और स्पष्ट कहने वाला छली नहीं होगा।

209-मूर्ख पंडितों से, दरिद्री धनियों से, व्यभिचारिणी कुल स्त्रियों से औऱ विधवा सुहागिनो से बुरा मानती हैं।

210- आलस्य से विद्या नष्ट हो जाती है, दूसरों के हाथ में जाने से धन निरर्थक हो जाता है, बीज की न्यूनता ने खेत हत हो जाता है, सेनापति के बिना सेना नष्ट हो जाती है।

211-अभ्यास से विद्या, सुशीलता से कुल, गुण से भला मनुष्य औ नेत्र से कोप ज्ञात होता है।

212-धन से धर्म की रक्षा होती है, यम नियम आदि योग से ज्ञान रक्षित होता है, मृदुता से राजा की रक्षा होती है, भली स्त्री से घऱ की रक्षा होती है।

213- वेद के पाण्डित्य को व्यर्थ प्रकाश करने वाला, शास्त्र औऱ उसके आचार में व्यर्थ विवाद करने वाला, शांत पुरुषों को अन्यथा कहने वाला ये लोग व्यर्थ ही क्लेश उठाते हैं।

214-दान दरिद्रता का नाश करता है, सुशीलता दुर्गति का, बुद्धि ज्ञान का, भक्ति भय का नाश करती है।

215- काम के समान दूसरी व्याधि नहीं है, अज्ञान के समान दूसरा वैरी नहीं है, क्रोध के तुल्य दूसरी आग नहीं है, ज्ञान से परे सुख नहीं है।

216- यह निश्चय है कि एक ही व्यक्ति जन्म लेता है, मृत्यु पाता है, सुख-दुख एक ही भोगता है, एक ही नरको में पड़ता है, एक ही मोक्ष पाता है, इन कामो में कोई भी किसी की सहायता नहीं करता ।

217- विदेश में विद्या मित्र है, गृह में भार्या मित्र है, रोगी का मित्र औषधि है और मरे का मित्र धर्म है।

218-समुद्रो में वर्षा वृथा है, और भोजन से तृप्त को भोजन निरर्थक है, धनी को धन देना व्यर्थ है, दिन में दीप व्यर्थ है।

219-मेघ के जल के समान कोई दूसरा जल नहीं है, अपने बल समान दूसरे का बल नहीं है इस कारण समय पर काम आता है, नेत्र के तुल्य दूसरा प्रकाश करने वाला नहीं है और अन्न के सदृश दूसरा प्रिय पदार्थ नहीं है।

220-सत्य से पृथ्वी स्थिर है, और सत्य से ही सूर्य तपते हैं, सत्य से ही वायु बहती है, सब सत्य से ही स्थिर है।

221-लक्ष्मी नित्य नहीं है, प्राण, जीवन, घर ये सब स्थिर नहीं है, निश्चय है कि इस चराचर संसार में धर्म ही निश्चचल है।

222-जन्मानेवाला, यज्ञोपवीत आदि संस्कार कराने वाला, विद्या देने वाला, अन्न देने वाला, भय से बचाने वाला, ये पांच पिता गिने जाते हैं।

223-मनुष्य शास्त्र को सुनकर धर्म को जानता है, दुर्बुद्धि को छोड़ता है, ज्ञान पाता है और मोक्ष पाता है।

224-पक्षियो में कौवा और पशुओ में कूकुर चांडाल होता है, मुनियो में चांडाल पाप है, औऱ सच में चान्डाल निंदक है।

225-कांस का पात्र राख से, तांबे का खटाई से स्त्री रजस्वला होने पर औऱ नदी धारा के वेग से पवित्र होती है।

226-भ्रमण करने वाले राजा, ब्राह्मण, योगी पूजित होते हैं , परंतु स्त्री घूमने से नष्ट हो जाती है।

227-जिसके धन है उसी का मित्र और उसी के बांधव होते हैं,और वही पुरुष गिना जाता है औऱ वही पंडित कहाता है।

228-काल सब प्राणियों को खा जाता है, और काल सब प्रजा का नाश करता है सब पदार्थ के लय हो जाने पर काल जागता रहता है, काल को कोई नहीं टाल सकता ।

229- जन्म का अन्धा नहीं देखता काम से अंधा हो रहा हो उसे सूझता नहीं मदोन्मत किसी को देखता नहीं और अर्थी दोष को नहीं देखता।

230- जीव आपही कर्म करता है, और उसका फल आप ही भोगता है, आप ही संसार में भ्रमता है, और आप ही उससे मुक्त होता है।

231-अपने राज्य में किए हुए पाप को राजा और राजा का पुरोहित भोगता है और स्त्रीकृत पाप को स्वामी भोगता है वैसे ही शिष्य के पाप को गुरू।

232- ऋण करने वाला पिता शत्रु है व्य़भिचारिणी माता और सुंदरी स्त्री शत्रु है और मूर्ख पुत्र वैरी है।

233- लोभी को धन से अहंकारी को हांथ जोड़ने से मूर्ख को उसके अनुसार बरतने से और पन्डित को सच्चाई से वश में करना चाहिए।

234-राज्य न रहना अच्छा लेकिन कुराजा का राज्य होना अच्छा नहीं , मित्र का न होना अच्छा लेकिन कुमित्र को मित्र करना अच्छा नहीं , शिष्य नहीं यह अच्छा लेकिन परंतु निंदित शिष्य कहलाए यह अच्छा नहीं, भार्या न रहे यह अच्छा पर कुभार्या का होना अच्छा नहीं है।

235- दुष्ट राजा के राज में प्रजा को सुख और कुमित्र मित्र से आनंद कैसे हो सकता है, दुष्ट स्त्री से गृह प्रीति और कुशिष्य को पढ़ाने से कीर्ति कैसे होगी ।

240- विद्वान पुरुष को चाहिए कि इन्द्रियों का संयम करके देश काल औऱ बल को समझकर बगुले के समान हर कार्य को साधे।

241- छिपकर मैथुन करना धैर्य करना समय में घर संग्रह करना सावधान रहना और किसी पर विश्वास न करना इन पांच को कौवे से सीखना चाहिए।

242- बहुत खाने की शक्ति रहते हुए भी थोड़े में संतुष्ट होना , गाढ़ निद्रा रहने पर भी झटपट जागना स्वामी की भक्ति और शूरता इन छ: गुणों को कुत्ते से सीखना चाहिए।

243- अत्यंत थक जाने पर भोझ को ढोते रहना, शीत और ऊष्मा पर दृष्टि न देना सदा संतुष्ट होकर विचरना इन तीन बातों को गधे से सीखना चाहिए।

245-धन का नाश, मन का ताप, गृहणी का चरित्र, नीच का वचन इनको बुद्धिमान प्रकाश न करे।

246- अन्न और धन के के व्यापार में विद्या के संग्रह करने में आहार और व्यवहार में जो पुरुष लज्जा दूर रखेगा वो सुखी रहेगा।

247- अपनी स्त्री भोजन और धन इन तीनो में संतोष करना चाहिए, पढ़ना जप और दान इन तीनो में संतोष नहीं करना चाहिए।

248- दो ब्राह्मण, ब्राह्मण और अग्नि, स्त्री पुरुष, स्वामी भृत्य, हल औऱ बल इनके मध्य होकर नहीं जाना चाहिए।

249- गाड़ी को पांच हांथ पर, घोड़े को दस हांथ पर, हांथी को हजार हांथ पर, दुर्जन को देश त्याग करके छोड़ना चाहिए।

250- अग्नि गुरू औऱ ब्राह्मण इनको पैरे से कभी नहीं छूना चाहिए वैसे ही गौ को, कुमारी को, बृद्ध को, बालक को पैरे से नहीं छूना चाहिए।

251- हांथी केवल अंकुश से, घोड़ा हांथ से, सींग वाले जंतु लाठी से और दुर्जन तलवार संयुक्त हांथ से दंड पाते हैं।

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